Maha Shivratri 2025: क्या है 12 ज्योर्तिलिंग का इतिहास? दर्शन करने का है प्लान तो जानिए आपके नजदीक कौन सा पड़ेगा
देशभर में भगवान शिव के 12 ज्योर्तिलिंग हैं. इनसे जुड़ा रोचक इतिहास है और सभी के दर्शन का अलग-अलग महत्व है. अगर आप भी इस शिवरात्रि पर ज्योर्तिलिंग के दर्शन करना चाहते हैं तो यहां जानिए आपके नजदीक कौन सा ज्योर्तिलिंग पड़ेगा.
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महाशिवरात्रि का पर्व आने वाला है. 26 फरवरी को (Maha Shivratri 2025) है. ये दिन भगवान शिव की विशेष पूजा-अर्चना का दिन है. भगवान शिव की पूजा में शिवलिंग की पूजा का खास महत्व है. वहीं अगर इस दिन ज्योर्तिलिंग के दर्शन कर लिए जाएं तो ये कहीं ज्यादा पुण्यदायी है. देशभर में भगवान शिव के 12 ज्योर्तिलिंग हैं. इनसे जुड़ा रोचक इतिहास है और सभी के दर्शन का अलग-अलग महत्व है.
शिव पुराण में भी इनकी महिमा का बखान किया गया है. कहा जाता है कि इन ज्योतिर्लिंगों के दर्शन और पूजन भक्तों के जन्म-जन्मांतर के सारे पाप व कष्ट दूर हो जाते हैं. अगर आप भी इस शिवरात्रि पर ज्योर्तिलिंग के दर्शन करना चाहते हैं तो यहां जानिए इनका इतिहास और कौन सा ज्योर्तिलिंग कहां पर है और आपके नजदीक कौन सा पड़ेगा.
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सोमनाथ
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इसे पहला ज्योतिर्लिंग माना जाता है. सोमनाथ ज्योतिर्लिंग गुजरात के सौराष्ट्र में समुद्र किनारे स्थित है. माना जाता है कि यहां चंद्रदेव ने शिव जी को प्रसन्न करने के लिए तप किया था. राजा दक्षप्रजापति ने चंद्रदेव को श्राप दिया था कि उनकी चमक कम होती जाएगी. इस श्राप से मुक्ति के लिए उन्होंने शिवजी की आराधना की थी. शिवजी ने प्रसन्न होकर यहां पर चंद्रदेव को श्राप से मुक्त किया था. चंद्रदेव को सोमदेव भी कहा जाता है, इसलिए इस मंदिर को सोमनाथ के नाम से जाना जाता है.
मल्लिकार्जुन
दूसरा ज्योतिर्लिंग मल्लिकार्जुन है जो आंध्र प्रदेश के कृष्णा शहर में कृष्णा नदी के किनारे श्रीशैल पर्वत पर है. यहां देवी पार्वती के साथ शिवजी विराजित हैं. मान्यताओं के अनुसार इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने से अश्वमेध यज्ञ के समान पुण्य मिलता है.
महाकालेश्वर
महाकालेश्वर को तीसरा ज्योतिर्लिंग माना जाता है. ये मध्यप्रदेश के उज्जैन में है. ये एकमात्र ज्योतिर्लिंग है जहां दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग की उपासना की जाती है. मान्यता है कि इस स्थान पर भगवान महाकाल के दर्शन करने से सभी प्रकार के भय, रोग एवं दोष से मुक्ति प्राप्त हो जाती है.
ओंकारेश्वर
चौथा ज्योतिर्लिंग ओंकारेश्वर है. ये इंदौर से करीब 80 किमी दूर नर्मदा नदी के किनारे एक ऊंची पहाड़ी पर है. कहा जाता है कि राजा मान्धाता ने नर्मदा किनारे इस पहाड़ी पर घोर तपस्या कर भगवान शिव को प्रसन्न किया था. शिवजी के प्रकट होने पर उनसे यहीं निवास करने का वरदान मांग लिया था. ऊंचाई से देखने पर इस स्थान का आकार 'ॐ' आकार का दिखाई देता है. इसलिए इसे ओंकारेश्वर कहा जाता है. यहां भगवान शिव के दर्शन करने से सभी कष्ट दूर हो जाते हैं. मान्यता है कि कोई भी तीर्थयात्री देश के सारे तीर्थ कर ले लेकिन, जब तक वह ओंकारेश्वर आकर किए गए तीर्थों का जल लाकर यहां नहीं चढ़ाता उसके सारे तीर्थ अधूरे माने जाते हैं.
केदारनाथ
पांचवां ज्योतिर्लिंग है केदारनाथ. हिमालय की गोद में बसे केदारनाथ मंदिर का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है. केदारनाथ उत्तराखंड के 4 धामों में से भी एक है. इसका निर्माण आठवीं या नौवीं सदी में गुरु शंकराचार्य ने करवाया था. मान्यता है कि महाभारत काल में भगवान शिव ने पांडवों को इसी स्थान पर बैल रूप में दर्शन दिया था.
भीमाशंकर
महाराष्ट्र के पुणे जिले में सह्याद्रि पर्वत पर भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग स्थित है. इसे छठवां ज्योतिर्लिंग माना जाता है. कुछ लोग भीमाशंकर को मोटेश्वर महादेव के नाम से भी पुकारते हैं. मान्यताओं के अनुसार राक्षस तानाशाह और कुंभकर्ण के पुत्र भीम का वध करने के बाद देवों ने भगवान शिव से आग्रह किया था कि वह इस स्थान में शिवलिंग रूप में विराजित हो. भगवान शिव ने प्रार्थना को स्वीकार किया और यहां पर ज्योतिर्लिंग के रूप में आज भी विराजित हैं.
काशी विश्वनाथ
ज्योतिर्लिंगों में सातवां नंबर काशी विश्वनाथ का है. ये उत्तर प्रदेश के वाराणसी में है. यहां भगवान शिव के साथ माता पार्वती भी विराजमान हैं. कहा जाता है कि यहां भगवान शिव के दर्शन के लिए स्वर्ग लोक से देवी देवता स्वयं पृथ्वी लोक पर आते हैं. माना जाता है कि जिस व्यक्ति की यहां मृत्यु होती है उसे निश्चित रूप से मोक्ष की प्राप्ति होती है.
त्रयम्बकेश्वर
आठवां ज्योतिर्लिंग त्रयम्बकेश्वर है जो महाराष्ट्र के नासिक में है. यहां के शिवलिंग में ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों की पूजा होती है. त्रयम्बकेश्वर का मंदिर ब्रह्मागिरी पर्वत पर स्थित है और इसी पर्वत से गोदावरी नदी शुरू होती है. गौतम ऋषि ने इसी स्थान में भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए तप किया था. गौतम ऋषि की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव प्रकट हुए थे और ज्योति स्वरूप में विराजमान है.
वैद्यनाथ
नौवां ज्योतिर्लिंग वैद्यनाथ झारखंड के देवघर जिले में है और इसकी बहुत मान्यता है. माना जाता है कि ये ज्योतिर्लिंग रावण द्वारा स्थापित है. रावण शिवजी का परम भक्त था. वो हिमालय में शिवजी का कठोर तप कर रहा था. तब शिवजी ने उसे दर्शन दिए. दर्शन के बाद रावण से शिव जी से वर मांगा कि वो उन्हें अपने साथ लंका ले जाना चाहता है. शिवजी ने उसे वर दे दिया लेकिन शर्त रखी कि अगर वो लंका के मार्ग में कहीं भी बीच में इस शिवलिंग को जमीन में रखेगा, तो ये वहीं स्थापित हो जाएगी. लंका ले जाते समय रावण ने भूलवश शिवलिंग को इस स्थान पर रख दिया और ये वहीं पर स्थापित हो गया. इस स्थान पर पूजा-पाठ करने से भक्तों के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं. श्रावण मास में लाखों की संख्या में कांवड़िए जल चढ़ाने आते हैं.
नागेश्वर
गुजरात के द्वारका में स्थित नागेश्वर ज्योतिर्लिंग दसवां ज्योतिर्लिंग है. इसका जिक्र शिवपुराण में भी मिलता है. बता दें कि शिव पुराण में नागेश्वर ज्योतिर्लिंग को दारूकावन क्षेत्र में ही वर्णित किया गया है. नागेश्वर का अर्थ नागों का ईश्वर है. छत्रपति संभाजी महाराज के शासनकाल में मुगल बादशाह औरंगजेब ने इस मंदिर की इमारतों को नष्ट कर दिया था. मंदिर के वर्तमान खड़े शिखर का पुनर्निर्माण अहिल्याबाई होल्कर द्वारा किया गया था .
रामेश्वरम
11वां ज्योतिर्लिंग तमिलनाडु के रामनाथपुरम में है. इसे रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग कहा जाता है. मान्यता है कि त्रेतायुग में भगवान श्रीराम ने समुद्र के तट पर बालू से इस शिवलिंग का निर्माण किया था. बाद में वो शिवलिंग वज्र के समान मजबूत हो गया. श्रीराम द्वारा स्थापना होने के कारण इस शिवलिंग को रामेश्वरम कहा जाता है. ये देश के 4 प्रमुख धामों में शामिल है.
घृष्णेश्वर
12वां और आखिरी ज्योतिर्लिंग घृष्णेश्वर है जो महाराष्ट्र के वेरुल नामक गांव में स्थित है. शिव पुराण में भी भगवान शिव के इस अंतिम ज्योतिर्लिंग का उल्लेख मिलता है. यहां भगवान शिव के दर्शन और पूजा-पाठ करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं. मंदिर का निर्माण देवी अहिल्याबाई होल्कर ने करवाया था.
12:02 PM IST